अंदाज़ भी निराला है उनका
वो हो कर खफा मुझ से
मेरे गुमशुदगी की वजह पूछते हैं
छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है
जितना किसी से डरोगे,
उतना बेवजह तडपोगे .
क्यूंकि इन्सान जिससे जाता सहम,
वह डर तो है मन का वहम .
मोहब्बत में यारों हमनें क्या-क्या नहीं लूटाया…
उन्हें पसंद थी रोशनी हमनें खुद को जला दिया…
तेरे होने से बोलने लगी थी दीवारें भी,हँसी निकलने लगी थी हर कोने से भी lअब ये आलम है की,मैं भी चुप हूँ,और सब खामोश है l
हजारों से करूं इश्क़,ये फितरत नहीं हमारी,पर तुमसे इश्क़ मैं, हजारों बार कर जाऊँगा l