तेरी यादों की खुशबू से हम महकते रहते हैं,
जब जब तुझको सोचते हैं हम बहकते रहते हैं…
हमें ख़बर है मोहब्बत के सब ठिकानों की….
शरीक-ए-जुर्म ना होते तो शायद मुखबरी करते!
लौटा जब वो बिना जुर्म की सजा काटकर,
सारे परिन्दें रिहा कर दिए उसने घर आकर.
टिक टिक करते घड़ियों के कांटे,
उम्र ढल रही मेरी बताते रहते है…
लफ्ज़ो को तो दुनिया समझती हैकाश कोई ख़ामोशी भी समझता।