हर बार कोई आ के तेरा ज़िक्र छेड़ कर,
इक आग फेंक जाता है सूखी कपास पर!
ज़िक्र और
फ़िक्र करना छोड़ दो,
समझदार होगा तो आएगा
वरना भाड़ में जाएगा !!
महोब्बत की महफ़िल में आज मेरा
ज़िक्र है, अभी तक हूं याद में उसको
खुदा का शुक्र है।
ये तेरा ज़िक्र है या इत्र है, जब-जब करती हूँ,महकती हूँ, बहकती हूँ, चहकती हूँ.
किसी हर्फ में किसी बाब में नहीं आएगा,तेरा ज़िक्र मेरी किताब में नहीं आएगा.
तेरे इश्क से मिली है, मेरे वजूद को ये शौहरत,मेरा ज़िक्र ही कहाँ था, तेरी दास्ताँ से पहले.