हर बार कोई आ के तेरा ज़िक्र छेड़ कर,
इक आग फेंक जाता है सूखी कपास पर!
कहीं अब मुलाक़ात हो जाए हमसे,बचा कर के नज़र गुज़र जाइएगा...जो कोई कर जाए कभी ज़िक्र मेरा,हंसकर फिर सारे इल्ज़ाम मुझे दे जाइएगा🤐...।।।
मेरी शायरी में सनम. तेरी कहानी है,जिसके आधे हिस्से मे तेरा ज़िक्र आधे में मेरी दीवानगी है.
जो सामने जिक्र नही करते,वो दिल ही दिल मे बहुत फिक्र करते हैं.
फ़िक्र तो तेरी आज भी है,बस जिक्र का हक नही रहा
जिक्र अधूरी मोहब्बत का किसी से ना करना.मैं खुद सबसे कह दूंगा की उन्हें फुरसत नही मिलती