इजाजत हो अगर तो पूछ लूँ मैं तेरी ज़ुल्फ़ों से,सुना है ज़िंदगी एक खूबसूरत जाल है साकी।
पहली मोहब्बत थी और हम दोनों ही बेबस, वो ज़ुल्फ़ें सँभालते रहे और मैं खुद को।
पहली मोहब्बत थी और हम दोनों ही बेबस,
वो ज़ुल्फ़ें सँभालते रहे और मैं खुद को।
बार बार बिखरती है सवारती ही नहीं ....
तेरी ज़ुल्फें शायद मेरी उंगलियों का सहारा चाहती है I
जुल्फें तुम्हारी परेशान करती है अक्सर,उठती है लहरें समंदर की तरह !!
ज़ुल्फ़ तेरी एक घनेरी शाम
की बदल है,
जो हर शाम रंगीन कर दे, ऐसी
वो तेरी आँचल है !!
जुल्फों में उसकी बीती मेरी सुबह
जुल्फों में ही उसकी मेरी शाम थी
और क्या बताऊ जिंदगी के बारे में
मेरी तो सारी उम्र बस उस ही के नाम थी…